मैं यानि कि आपका मुनमुन श्रीवास्तव अपने ब्लॉग पर आपका स्वागत करता हूँ

रविवार, 19 फ़रवरी 2012

वैलेंटाइन डे मालूम है, महाशिवरात्रि का पता नहीं ! !


     ल शिवरात्रि है। भोर होते ही देश भर के मंदिर हर हर महादेव और जय जय शिवशंकर से गुंजायमान हो उठेंगे। शिवरात्रि के मौके पर मेरे एक मित्र शाम को अपने छठी क्‍लास में पढ़ने वाले बेटे के साथ पत्‍नी के लिए शि‍वरात्रि पर पूजन का सामान- बेलपत्र,धतूरा,बेर आदि खरीदने बाजार पहुंचे। इतने में बेटे ने पिता से सवाल कर डाला कि शिवरात्रि क्‍यों मनाई जाती है। पिता ने बजाय सवाल का जवाब देने के बच्‍चे को डांट दिया कि तुमको इतना भी नहीं पता। सारा दिन कंप्‍यूटर और इंटरनेट पर करते क्‍या रहते हो। सीधे सीधे जानकारी देने की बजाय उल्‍टा बच्‍चे को यह भी ताना दे डाला कि मुझसे 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे पर तो यह नहीं पूछने आए थे कि पापा वैलेंटाइन डे क्‍यों मनाया जाता है... वगैरह वगैरह। मैं भी साथ ही था। कहने लगे कि बताओ आजकल के लड़के सारा दिन कंप्‍यूटर और लैपटॉप पर चिपके रहते हैं और उनको पता ही नहीं कि शिवरा‍त्रि आखिर मनाई क्‍यों जाती है। घर में ब्रॉडबैंड का अनलिमिटेड प्‍लान हमने आखिर क्‍यों लगवा रखा है। गूगल पर सर्च मारो और सारी जानकारियां चुटकी में पता कर लो। मित्र की बात सुनकर मुझे गुस्‍सा भी आया और आज के दौर में पैरेंट्स को अपनी जिम्‍मेदारियों से बचते देख खीज भी हुई। दरअसल, मेरे मित्र जैसा ही हाल आज के अधिकतर मम्‍मी-पापा का है,जो बच्‍चों के कुछ भी पूछने पर उनको ठीक तरह से समझाने की बजाया बुरी तरह झिड़क देते हैं। यह कहते हुए कि तुम्‍हे यह नहीं पता,वो नहीं पता...वगैरह वगैरह।
वैसे सच तो यह है कि यदि बच्‍चा हर जानकारी कंप्‍यूटर और इंटरनेट से ले सकता है,तो फिर क्‍लास रूम और शिक्षक की क्‍या जरूरत है। यही वजह है कि जब बच्‍चे इंटरनेट पर अपने मन मुताबिक साइटें सर्च कर भटकाव के रास्‍ते पर कदम रख देते हैं,तो ऐसे ही पैरेंट्स इसका दोष आज के जमाने की आबो हवा के साथ-साथ कंप्‍यूटर और इंटरनेट को दे डालते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि बच्‍चों को केवल पैरेंट्स की ओर से सुविधाएं ही नहीं बल्कि मार्गदर्शन भी चाहिए। बच्‍चों को सही मार्गदर्शन देना उनका कर्तव्‍य है और दायित्‍व भी।

एक जमाना था जब दादी-नानी बच्‍चों को सोते समय रोचक कहानियां सुनाया करती थीं,उससे न केवल बच्‍चों का मनोरंजन होता था बल्कि उनका बौद्धिक विकास भी होता था। खेल-खेल में वे संस्‍कार सीखते थे वो अलग। त्‍योहारों के महत्‍व के साथ-साथ उनको मनाने के सही तरीके के बारे में जानकारी मिलती थी।
आज संयुक्‍त परिवार रहे नहीं ऐसे में बच्‍चों की जिज्ञासाओं को शांत करने की जो जिम्‍मेदारी पैरेंट्स को निभानी चाहिए,वे उसे कंप्‍यूटर और इंटरनेट के भरोसे छोड़ देते हैं। उस पर वह क्‍या और किस तरह का ज्ञान और इन्‍फॉर्मेशन हा‍सिल कर रहा है,पैरेंट्स को देखने की फुर्सत ही कहां है। ऐसे में जब किसी पैरेंट्स का बच्‍चा भटकाव का शिकार हो जाता है,तब वे इसका सारा दोष आज के दौर के साथ-साथ कंप्‍यूटर और इंटरनेट के मथ्‍थे मढ़ देते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि बच्‍चों की जिज्ञासाओं को स्‍वयं शांत करके ही आप उनके दोस्‍त बन सकते हैं।
सोचिए जरा.....क्‍या यह बुदबुदाना ठीक है कि वैलेंटाइन डे मालूम है और शिवरात्रि के बारे में पता नहीं।
इसलिए अगली बार जब आपका बच्‍चा आपसे कोई सवाल करे तो उसकी जिज्ञासा खुद शांत करें न कि गूगल के भरोसे छोड़ दें। याद रखें उनके पैंरेंट्स आप हैं न कि कोई और....

5 टिप्‍पणियां:

  1. thik kaha...agar sab kuch google hi bataega to parents ka role kya hoga!!!!

    जवाब देंहटाएं
  2. bilkul sahi...parents bhi aajkal in sab baato ko batane me ruchi nhi lete!!!!!!!!!!!!

    जवाब देंहटाएं
  3. आपने की शिकायत जायज है। आजकल माता-पिता या तो बच्चों को पूरी तरह छूट दे देते हैं या फिर बहुत अधिक अनुशासन लाद देते हैं। माता-पिता ही अपने कर्तव्यों से विमुख होंगे तो बच्चों में संस्कारों की अपेक्षा कैसे की जा सकती है। आजकल के बच्चों में टीवी और इंटरनेट के दिए संस्कारों की झलक साफ देखने को मिलती है।

    जवाब देंहटाएं