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गुरुवार, 22 मार्च 2012

‘मेरा शहर मेरा गीत’ से मिला चुनिंदा शहरों को उनका अपना गीत


दैनिक जागरण पढते आदेश 
    दैनिक जागरण के मेरा शहर मेरा गीत अभियान से राजधानी दिल्‍ली को कुछ बात तो है मेरी दिल्‍ली में...गीत मिल ही गया। दिल्‍ली की ऐतिहासिक विरासत,सभ्‍यता संस्‍कृ‍ति और लाइफ स्‍टाइल को समेटे इस गीत को गाया और संगीत दिया है बॉलीवुड के मशहूर संगीतकार और गायक आदेश श्रीवास्‍तव ने। रविवार 18 मार्च की शाम इस गीत के लॉन्चिंग कार्यक्रम में डीएलएफ प्‍लेस मॉल पहुंचे आदेश ने दर्शकों के सामने दिलवालों की दिल्‍ली के इस खास गीत को पूरे जोश के साथ गाया। यही नहीं मेरा शहर मेरा गीत अभियान के जरिए दिल्‍ली सहित चुनिंदा शहरों में प्रतिभाशाली गीतकारों को दुनिया के सामने लाने के दैनिक जागरण के उल्‍लेखनीय प्रयास की जमकर सराहना भी की। 
डीयू के साथ-साथ अन्‍य शैक्षणिक संस्‍थानों में पिछले एक सप्‍ताह से इस गीत की गूंज सुनाई दे रही है।
राजधानी दिल्‍ली सहित 15 प्रमुख शहरों के लोगों को उनके शहर की सांस्‍कृतिक विरासत से रूबरू करवाता अब उनका अपना गीत मिल गया है। जिसे वे जब चाहे गा सकते हैं,झूम सकते हैं और उस पर थिरकते हुए अपने जोश का इजहार कर सकते हैं।
विश्‍व का सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला अखबार दैनिक जागरण के इस अनूठे अभियान की राजनीतिक हलकों से लेकर कॉरपोरेट जगत और शैक्षणिक संस्‍थानों में खूब हलचल मची हुई है।
मेरा शहर मेरा गीत अभियान के प्रमुख सूत्रधार रहे संगीतकार और गायक आदेश श्रीवास्‍तव से इस अभियान के खास पहलुओं पर हमने बातचीत की। 
मेरा शहर मेरा गीतअभियान से जुड़कर कैसा महसूस कर रहे हैं?
बेमिसाल अभियान 
हमारे देश के राष्‍ट्रीय गाण के सौ साल पूरे होने के उपलक्ष्‍य में पांच नवंबर 2011 को मेरा शहर मेरा गीत के नाम से जागरण ने देश के प्रमुख शहरों में छुपी हुई प्रतिभाओं को सामने लाने के साथ-साथ लोगों में अपने शहर के प्रति फीलिंग्‍स को शब्‍दों में तराशने की जो अलख जगाई वह बेमिसाल रही। लोगों ने उत्‍साह के साथ अपने शहर की ऐतिहासिक विरासत और उसके लाइफ स्‍टाइल को केंद्र में रखकर अद्भुत गीत रचे। इससे यह भी पता चला कि लोग अपने शहर से कितना प्‍यार करते हैं। मैं तो जागरण परिवार का शुक्रगुजार हूं कि उन्‍होंने मुझे इस काबिल समझा कि मैं सभी गीतों को संगीत दूं और कुछ को अपनी आवाज से भी सजाऊं।
गीतों के चयन में कुछ कठिनाइयां भी आई होंगी ?
कुछ गीतों के बोल बेहतरीन रहे,तो वहीं कुछ में उनको गीतों के सांचे में ढालने में थोड़ी मेहनत करनी पड़ी। ऐसा इसलिए क्‍योंकि कविता और गीत के बीच फर्क होता है। बावजूद इसके सभी गीत अपने शहर की संस्‍कृति को खुद में समेटे थे। इस अहसास को स्‍वर और लय में प्रस्‍तुत करना बड़ी चुनौती थी। रिकॉर्डिंग से पहले हमने गीतों को बहुत गुनगुनाय और पूरी तरह संतुष्‍ट होने के बाद ही फाइनल रिकॉर्डिंग की।
दिल्‍ली के गीत के शुरुआत का म्‍यूजिक तिरंगा लहराने का अहसास दिलाता है। इसका आइडिया कैसे आया ?

हर शहर के गीत का म्‍यूजिक बनाते समय हमने यह कोशिश की कि वह सजीव लगे। राजधानी दिल्‍ली ऐतिहासिक नगरी है। यहां हर धर्म,भाषा,राज्‍य,सभ्‍यता और संस्‍कृति के लोग तिरंगे के तीन रंगों की तरह आपस में प्रेम और सौहार्द के रंग में रंगे नजर आते हैं।गीत के बोल शुरु होने से पहले बैकग्राउंड म्‍यूजिक में हमने श्रोताओं को देशप्रेम के रंग में रंगने का प्रयास किया है।
वे कौन-कौन से शहर हैं,जिनका गीत तैयार किया गया है ?
आगरा,अलीगढ,इलाहाबाद,दिल्‍ली,देहरादून,गोरखपुर,हल्‍द्वानी,जमशेदपुर,कानपुर,लखनऊ,मेरठ,मुरादाबाद,पटना,रांची और वाराणसी। इन शहरों के गीत अलग अलग ऑडियो सीडी में तैयार किए गए हैं। आप सभी गीतों को www.mycitymyanthem.com पर जाकर सुन सकते हैं,डाउन लोड कर सकते हैं। यही नहीं इनमें से जिसे चाहें अपने मोबाइल की कॉलर टयून या रिंग टोन भी बना सकते हैं। 
किस शहर का गीत सबसे खास लगा आपको ?
हर शहर का गीत अपने आप में बेमिसाल है।किसी एक की तारीफ करना दूसरे के साथ अन्‍याय होगा।
मेरा शहर मेरा गीत अभियान के विजेता गीतकारों के लिए बॉलीवुड में स्कोप है ?
इस अभियान के लिए गीत रचने और फिल्मों के लिए गीत लिखने में बहुत अंतर है। हालांकि,गीतों के बोल से ऐसा लगता है कि इन छिपी प्रतिभाओं में आगे बढ़ने का पूरा दमखम है। यदि वे मेहनत करेंगे तो बॉलीवुड में भी बतौर गीतकार अपनी पहचान बना सकते हैं। इन उभरते गीतकारों को जागरण ने इस अभियान के माध्यम से जो मंच उपलब् करवाया है, वह उनके लिए लॉन्चिंग पैड बन सकता है।  
सुना है आप एक एल्‍बम के माध्‍यम से दुनिया को शांति का संदेश देने वाले हैं ?
सही सुना है। साउंड ऑफ पीस के नाम से एक एल्‍बम ला रहा हूं। दरअसल,मुंबई बम धमाकों में मेरे भी तीन दोस्‍त शहीद हुए थे। जिसकी पीड़ा आज भी मेरे दिल में है। यह एल्‍बम दुनिया को आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने और विश्‍व शांति संदेश देगा। इसमें अमित जी ने भी गाया है। उस्‍ताद राशिद खान, बार्कलेज जॉन, मेरी पत्‍नी विजेता पंडित,पद्मिनी कोल्‍हापुरे आदि की आवाज आपको सुनाई देगी।
दिल्‍ली में क्‍या खास लगता है आपको ?
दिल्‍ली वास्‍तव में दिलवालों की नगरी है। यहां का हर मौसम निराला है। अब तो पहले से भी ज्‍यादा चौड़ी-चौड़ी सड़के हैं। एक से बढकर एक मॉल हैं। हरियाली अब पहले से ज्‍यादा है। सचमुच साड्डी दिल्‍ली अब पहले से कहीं ज्‍यादा खूबसूरत लगती है और यहां बार-बार आने को दिल करता है।



गुरुवार, 15 मार्च 2012

आम आदमी की हैं यह ‘ममता’



रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी के रेल बजट पेश करने के कुछ ही घंटों के भीतर बढ़े हुए किराए को लेकर तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी ने जिस तरह के तीखे तेवर दिखाए, उससे यह साबित होता है कि ममता केवल नाम की ही ममता नहीं हैं। उनके दिल में महंगाई और भ्रष्‍टाचार से जूझ रही आम जनता के लिए भी भरपूर ममता है। वे उसे राहत पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगी।
यह सच है कि पिछले नौ साल में रेल किराए में कोई सीधी बढ़ोत्‍तरी नहीं हुई मगर इस एक दशक में महंगाई की रेल  बेलगाम हो गई है। पेट्रोल,डीजल और रसोई गैस की कीमतें सुरसा के मुंह की तरह बढ्रती ही जा रही है। ये बढी कीमतें हर चीज को महंगा कर देती हैं। आम नौकरीपेशा,मेहनतकश और गरीब तबके की कमर ही टूट जाती है। ऐसे में यदि इतने साल में रेल किराए नहीं बढ़े थे,तो इस बढोत्‍तरी को जायज ठहराने वाले जरा यह सोचें कि आप और हम एक साल में कितनी मर्तबा रेल से लम्‍बी दूरी की यात्राएं करते हैं। शायद दो,चार,पांच या अधिक से अधिक दस बार।अधिकतर लोग इसी दायरे में आते है।
अब महंगाई की तुलना में इसे देखिए। एक साल में घर में कितने सिलेंडर खर्च हो जाते हैं। पप्‍पू कॉलेज जाने के लिए अपनी मोटर साईकिल में पेट्रोल भरवाने के लिए पापा से हर महीने अब और ज्‍यादा पैसे की डिमांड करने लगा है। गली में सब्‍जी बेचने आने वाले रामू काका से जब संतो की मां सब्‍जी के भाव हर दूसरे दिन बढ़ा देने को लेकर सवाल करती है,तो काका यही कहते हैं,डीजल के दाम बहनजी कहां से कहां पहुंच गए। मंडी में महंगा बिकेगा,तो हम क्‍या करें। रेल किराए की मार तो यात्रा करने पर पड़ती है, वहीं महंगाई का असर हर रोज आम आदमी की रेल बना दे रहा है।
मौजूदा रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी यह कहते फूले नहीं समा रहे कि रेलवे आईसीयू में पड़ी है,उनके इस साहसिक कदम से उसे नया जीवन मिलेगा। किराया बढ़ाने को लेकर उनका यह तर्क भी गले नहीं उतरता कि यदि ऐसा नहीं किया जाता ,तो स्‍टाफ को सैलरी देना भी मुश्किल हो जाएगा।
मेरी तरह आपको भी शायद यह समझ नहीं आता होगा कि रेल में महीनों पहले आसानी से रिजर्वेशन नहीं मिलता। लंबी-चौड़ी वेटिंग लिस्‍ट होती है। तत्‍काल कोटा में सीटें ओपनिंग के पांच मिनट के भीतर ही फुल हो जाती हैं। जनरल कोचों की बात तो छोड़ ही दीजिए रिजर्वेशन डिब्‍बे में भी यात्रियों की अधिकतम संख्‍या से कई गुणा ज्‍यादा यात्री सफर करते हैं। बावजूद इसके कि वे सकुशल अपने गंतव्‍य तक पहुंचेंगे या नहीं।
फटी हुई धूल जमी सीटें,गंदे टॉयलेट और धीमी गति से चलने का रिकॉर्ड बनाने पर आमादा पंखे। यही है सुविधाओं की बानगी। रेलमंत्री जी ने कमेटियों की किराया बढ़ाने की सिफारिशें तो खूब मानीं,लेकिन महज किराया बढ़ाने से आगे अन्‍य सिफारिशें केवल कागजों में ही धूल खाती रहेंगी। आम लोगों की तो यही राय है।
हालांकि ममता ने जो किया भले ही उसे अखबार और टीवी चैनल राजनीति के चश्‍मे से देख रहे हों, मगर यह कहना गलत न होगा कि परिवहन के साधनों के किराए बढ़ा देना ही सरकारों को घाटे से निपटने का सबसे बेहतरीन रास्‍ता नजर आता है। दिनेश त्रिवेदी को साहसी तब कहा जाता जब वे बिना किराया बढ़ाए उपलब्‍ध साधनों का सर्वोत्‍तम उपयोग करते हुए रेलवे को आईसीयू से नॉर्मल वॉर्ड में ले आते। भारतीय रेल विज्ञापन और ब्रांड प्रमोशन के लिए कॉरपोरेट को साध उनके लिए बेहतर प्‍लेटफॉर्म उपलब्‍ध करवा सकती है। वहीं,इससे उसका खजाना हमेशा भरा रहेगा। हालांकि,इस पूरे प्रकरण ने यह साबित जरूर कर दिया है कि उनके लिए मां,माटी,मानुष का हित सर्वोपरि है। शायद इसीलिए ममता दीदी का यह कदम आम लोगों को बुरा नहीं लगा बल्कि वे तो यही कह रहे हैं कि काश हर नेता इसी तरह आम आदमी पर थोड़ी ममता बरसाता।  

गुरुवार, 8 मार्च 2012

होली के रंगों में छिपा है आपकी किस्‍मत का कनेक्‍शन !


होली पर आपने भी अपने अपनों को रंग और गुलाल से सराबोर करने में आज कोई कसर नहीं छोड़ी होगी। जमकर खेली होगी होली,तो यकीनन चेहरे और शरीर पर रंग की छाप भी पूरी तरह छूटी नहीं होगी।
कौन सा रंग इस बार आप पर ज्‍यादा चढ़ा,गौर किया आपने। शायद नहीं। कोई बात नहीं अपनी होली को एक बार रीकॉल कीजिए,ध्‍यान आ जाएगा। कुछ याद आया। अब आप यह सोच रहे होंगे कि हम आपसे यह सवाल कर क्‍यों रहे हैं। तो जनाब इसका कारण यह है कि अबकि होली पर जिस रंग का असर आप पर ज्‍यादा हुआ है,वह आपकी किस्‍मत को नए सिरे से संवार सकता है।
दरअसल,ज्‍योतिषविज्ञानी यह मानते हैं कि रंगों का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इसीलिए आज जो रंग आप पर ज्‍यादा चढ़ा है आपके भाग्‍य के सितारे उतने ही इंद्रधनुषी रंगों में रंगे जाएंगे। इस बारे में बता रहे हैं जाने-माने ज्‍योतिषि

 पंडित नागेंद्र शास्‍त्री:
होली रंगों की अद्भुत छटा का सतरंगी त्‍योहार है। हर रंग ऊर्जावान होता है,लेकिन उनके प्रभाव एक समान नहीं होते।

लाल रंग भरेगा नई ऊर्जा: यदि आप काफी दिनों से अपने काम में मन नहीं लग रहा। स्‍वभाव चिड़चिड़ा हो गया है। अपनी क्षमता का पूरा उपयोग नहीं कर पा रहे। यकीन मानिए कि आज आपके गालों पर सुर्ख हुआ लाल रंग आपके आलस्‍य को दूर कर आपमें नई ऊर्जा का संचार कर देगा। इसलिए अब आप चाह कर भी आलसपन नहीं दिखा सकते जनाब।
हरा रंग बनाएगा हरा-भरा: अगर आप आप पर गहरे हरे रंग की छाप ज्‍यादा पड़ी है,तो यकीन मानिए इस वर्ष आप लाभकारी यात्राएं बहुत करेंगे। यदि नौकरीपेशा हैं,तो उच्‍चाधिकारी आपके काम से खुश होकर आपको प्रमोशन देंगे। यदि आप सेल्‍फ एम्‍पलॉयड हैं,तो आपका कामकाज अब जोरों पर होगा।
यदि चेहरे पर पैरट ग्रीन यानी तोतिया कलर ज्‍यादा चमक रहा था,तो खुश हो जाइए। मिठ्ठू मियां आपकी तकदीर में नए रंग भरने के लिए तैयार है। एक से अधिक आय के अवसर प्राप्‍त होंगे। किसी ऐसे शख्‍स से मेलजोल भी बढ़ेगा,जो आपको सफलता की बुलंदी पर ले जाएगा।
पीला देगा,चहुंओर खुशियां:यदि आप घर या ऑफिस की टेंशन से परेशान हैं,तो इस बार आपके चेहरे पर चढ़ी पीले रंग की परत हर चिंता से आपको मुक्‍त करने जा रही है। घर में खुशियां तो आएंगी हीं,नौकरी में भी अप्रत्‍याशित तरक्‍की मिलने के चांस शत-प्रतिशत हैं।
बैंगनी देगा एडवेंचर:यदि आप अपनी लाइफ में कुछ नया करना चाहते हैं,तो जनाब बैंगनी रंग अब इसे हकीकत में बदलने जा रहा है। तीन माह के भीतर आप मन में सोचे हुए उन सभी कार्यों को पूरा करने में सक्षम होंगे,जो आपने सालों से अपने मन में दबाकर रखे हुए हैं। इसलिए जस्‍ट चिल,चिल....।
पिंक से आएगा रोमांस:इस बार यदि आपका चेहरा गुलाबी हो गया है,तो फिर आपकी जिंदगी में रुमानियत की खुशबू जमकर बिखरेगी। जो लोग कुंआरे हैं,वे यह जान लें कि अगली होली से पहले उनका बैंड बज जाएगा। जो लोग शादी शुदा हैं उनकी मैरिड लाइफ में एक नई गति आएगी। पार्टनर एक दूसरे पर भरपूर विश्‍वास करेंगे,प्‍यार की गाड़ी सरपट दौड़ती नजर आएगी।
काला रंग दूर करेगा हर परेशानी: जिंदगी में अक्‍सर छोटी-बड़ी परेशानियां हमारा रास्‍ता रोकती रहती हैं। लेकिन अगर इस होली पर रंगों के मिश्रण से आपका चेहरा काला हो गया हो,तो खुश हो जाइए। आपके चेहरे पर कालिख नहीं पुती,बल्कि अब आपके दोनों हाथों में लड्डू और सिर कड़ाही में रखने का समय आ गया है।

बुधवार, 7 मार्च 2012

चांदी की सा‍इकिल, सोने की सीट....


यूपी के चुनावी नतीजों ने साल 1993 में रिलीज हुई गोविंदा और जूही चावला की फिल्‍म भाभी के उस मशहूर गीत चांदी की साइकिल,सोने की सीट,आओ चलें डार्लिंग चलें डबल सीट...' की यादें एक बार फिर से ताजा कर दी। आज के जेट युग में जहां हवा से बातें करतीं मोटरबाइकों की बातें ही ज्‍यादा होती हैं,ऐसे में पिछले दो दिनों से चर्चा में है तो सिर्फ और सिर्फ साइकिल। चर्चा हो भी क्‍यों न, समाजवादी पार्टी, जिसका चुनाव चिन्‍ह साइकिल है,उसने अपने पैडल से ऐसी फर्राटा भरी कि हाथी अपनी मस्‍त चाल के अभिमान में झूमता रहा,हाथ हवा-हवाई हो गया और कमल की तो जैसे पत्तियां ही बिखर गईं।

साइकिल पर सवार मुलायम सिंह और उनके युवराज अखिलेश यकीनन जीत की इस खुशी पर फूले नहीं समा रहे। उनकी होली दो दिन पहले ही शुरू हो गई। हालांकि, यह भी सच है कि यूपी की उबड़-खाबड़ सड़कों पर उन्‍हें बड़े संभल कर अपनी साइकिल चलानी होगी। ऐसा इसलिए क्‍योंकि यह यूपी की वही आवाम है,जिसने साल 2007 में हाथी को साइकिल के ऊपर बिठा सबको चौंका दिया था। मगर जब यही हाथी जनता की नब्‍ज को नहीं पकड़ पाया,तो 2012 में उसकी हुंकार शायद गले में ही फंस कर रह गई। मुलायम की चांदी की यह साइकिल(पूर्ण बहुमत वाली) जो सोने की सीट(अखिलेश जैसा युवा नेता) से सुसज्जित है वह यूं ही अपनी रफ़तार से चलती रहे,इसके लिए जरूरी है कि मुलायम एंड कंपनी जनता के जख्‍मों पर मरहम लगाए। उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरे। उत्‍तर प्रदेश को वास्‍तव में उत्‍तम प्रदेश बनाने के लिए सार्थक प्रयास करे। सत्‍ता के मद में लोगों की जरूरतों को अनदेखा न करे।
मुलायम को भूलना नहीं चाहिए कि यूपी की पिछली सरकार सर्वजन हिताय,सर्वजन सुखायकी बात करती थी,मगर यदि अधिकांश जनता वास्‍तव में मायाराज में सुखी होती,तो उसे बढ़े वोट के उस अंडर करंट का इतना जोरदार झटका कभी नहीं लगता,जिसकी आहट बड़े-बड़े राजनीतिक सूरमा भी चुनाव के दौरान पहचान नही पाए थे।
इसीलिए मुलायम यदि फिल्‍म भाभी के इस गीत को सदा गुनगुनाते रहना चाहते हैं,तो उनको वास्‍तव में डबल सीट चलना होगा, यह गाते हुए चांदी की साइकिल,सोने की सीट। आओ चलें पब्लिक चलें डबल सीट...


इलस्‍ट्रेशन साभार: द टाईम्‍स ऑफ इंडिया 

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

बाबू जी जरा धीरे बोलो, आजू-बाजू है पब्लिक खड़ी



      चुनावी समर में बड़बोलापन कोई नई बात नहीं है। चूंकि यूपी के इलेक्‍शन के नतीजे 2014 में होने वाले लोकसभा चुनावों का सेमीफाइनल हैं। इसीलिए उत्‍तर प्रदेश में विजयश्री हासिल करने के लिए कांग्रेस कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल का यह कहना कि कांग्रेस नहीं तो प्रदेश में राष्‍ट्रपति शासन ही विकल्‍प। यह समझने के लिए काफी है कि कांग्रेस के लिए इस बार यूपी कितना अहम है। यही वजह है कि विभिन्‍न चुनावी चरणों में जब कांग्रेस को यह लगता है कि चुनावी हवा उसके अनुरूप नहीं बह रही है या फिर वह कहीं पिछड़ रही है,तो उसके नेताओं के सब्र का बांध टूट जाता है। मंत्रीजी का अहंकार भरा यह कथ्‍य शायद इसी की पुष्टि करता है।
वैसे भी, टीवी पर जब आप कांग्रेस के यूपी चुनाव प्रचार के विज्ञापन देखें तो साफ है कि वह उत्‍तर प्रदेश की बदहाली का रोना रोकर वोटरों से वोट मांग रही है और मतदाताओं को सोचिए जरा कर लुभाने में जुटी है। क्‍या कांग्रेस यह भूल गई है कि प्रदेश में आजादी के बाद से सबसे अधिक समय तक किस दल की सरकार रही। क्‍या प्रदेश महज कुछ सालों में ही बदहाल हो गया। कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि यूपी की हालत के लिए वह भी उतनी ही दोषी है,जितनी की सपा,बसपा या बीजेपी।
जरा गौर फरमाइए। कभी अत्‍यंत पिछड़े प्रदेश में शुमार किए जाने वाले बिहार के विकासद पर। आज पूरे देश की विकास दर जहां 7 प्रतिशत से नीचे है वहीं बिहार 14 प्रतिशत से अधिक ग्रोथ रेट दर्ज कर रहा है। सुशासन की तरफ बढते बिहार में जनता ने नीतिश को दुबारा अवसर शायद इसीलिए दिया था। दूसरी बार नीतिश भी यह नहीं जानते थे कि उनको इतना प्रचंड बहुमत मिलेगा कि विपक्षी दल उसके बवंडर में उड़ जाएंगे।
यदि यूपी में बढ़े मतदान प्रतिशत को वर्तमान मायावती सरकार के खिलाफ माना जा रहा है,तो इसके लिए सभी दलों को 6 मार्च का इंतजार करना होगा। चुनाव नतीजे दूध का दूध और पानी का पानी कर देंगे। जनता को जिस दल पर भरोसा होगा,उसे ही विजयश्री मिलेगी। चुनावी सर्वेक्षण एकदम सटीक बैठें यह दावे से नहीं कहा जा सकता। 2007 में यूपी चुनावों के बाद न तो सर्वेक्षण और न ही खुद मायावती यह जानती थीं कि उनको अपने दम पर स्‍पष्‍ट बहुमत मिलेगा।
इसीलिए श्रीप्रकाश बाबूजी, जरा धीरे बोलिए,पब्लिक खड़ी यहां पब्लिक खड़ी। 

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

बाबा अभी दिल्‍ली दूर है


    बाबा रामदेव के समर्थकों पर पिछले साल 4 जून की रात रामलीला मैदान पर जिस तरह पुलिसिया बर्बरता हुई क्‍या वह मजबूरी में उठाया गया कदम था या फिर सरकार के इशारे पर रामदेव और उनके समर्थकों पर आधी रात के बाद यह कार्रवाई की गई। सुप्रीम कोर्ट के बृहस्‍पतिवार को इस मुददे पर फैसले के बाद अब सब साफ हो गया है कि उस रात जमकर पुलिसिया बर्बरता हुई,जिसे पुलिस बराबर नकारती रही।
यह हम सभी जानते हैं कि रामलीला मैदान पर पुलिसिया तांडव के बीच किसी तरह अपनी जान बचा कर भागे बाबा रामदेव खुद सुप्रीम कोर्ट नहीं गए थे, बल्कि उच्‍चतम न्‍यायालय ने मीडिया रिर्पोटों के आधार पर इस मामले पर स्‍वत: संज्ञान लिया था। निश्चित रूप से इस फैसले से बाबा रामदेव बेहद खुश हैं और इसे एक बड़ी जीत मान रहे हैं, हालांकि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद बाबा का दायित्‍व और भी बढ़ जाता है। योग सिखा कर दुनिया भर में नाम कमाने वाले रामदेव का आंदोलन भ्रष्‍टाचार और काले धन पर ही केंद्रीत रहेगा, तो यकीनन उनको वैसा ही समर्थन फिर से मिलेगा, जैसा पहले।
पहले बाबा रामदेव और फिर अन्‍ना हजारे का आंदालोन, दोनों का ही मूल उद्देश्य भ्रष्‍टाचार और काले धन की वापसी के साथ एक सशक्‍त लोकपाल सिस्‍टम लाने का रहा, मगर व्‍यवहार में एक सीमा के बाद यह एक पार्टी विशेष के खिलाफ अभियान ही ज्‍यादा बन कर रह गया। नतीजा यह हुआ कि भ्रष्‍टाचार से जूझती आम जनता का जोश भी ठंडा पड़ गया। शायद यही वजह रही कि अन्‍ना ने जब मुंबई में सशक्‍त लोकपाल के लिए रामलीला मैदान के बाद तीसरी बार अनशन शुरू किया तो वे लोगों का वैसा समर्थन हासिल करने में कामयाब नहीं रहे, जैसा उनको पहले मिलता रहा। ऐसे में जब सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद यह कहा जा रहा है कि रामदेव एक बार फिर नई ऊर्जा के साथ भ्रष्‍टाचार और काले धन के मुददे पर स्‍वर मुखर करेंगे तो उनसे यह उम्‍मीद की जाती है कि वे किसी बड़बोलेपन का शिकार न हों और जिम्‍मेदारी की भावना से काम करें। यदि वे ऐसा करते हैं तो एक बार पुन: आमजन विशेषकर युवाओं का भरपूर समर्थन हासिल कर पाएँगे और भ्रष्‍टाचार व कालेधन के खिलाफ उनका अभियान सिरे चढेगा। 

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

...यह कहीं सचिन को ‘साइड लाइन’ करने की साजिश तो नहीं


सीबी सीरीज में अब तक बल्‍ले से वीरेंद्र सहवाग भले ही महज 30 रन बना पाए हों,लेकिन ब्रिस्‍बेन में भारत और श्रीलंका के बीच हुए मुकाबले में हार के बाद मंगलवार को प्रेस वार्ता में उन्‍होंने जो कुछ भी कहा वह थोथा चना बाजे घना से ज्‍यादा कुछ नहीं था। बेशक वे इस मैच में धौनी की जगह भारतीय टीम की कप्‍तानी कर रहे थे और उन पर टीम को जीत दिलाने की बड़ी जिम्‍मेदारी थी। हालांकि जिस तरह गैर जिम्‍मेदाराना शॉट खेलकर वह चलते बने उससे यह साफ है कि सहवाग में शायद अब वह आग नहीं रही जिसने उन्‍हें एक समय मुल्‍तान का सुल्‍तानका खिताब दिलाया था।


लगातार दूसरी हार के बाद उन्होंने प्रेस वार्ता में यह कहकर चौंका दिया कि हमें युवा खिलाडि़यों को तरजीह देनी होगी। पिछले दिनों भारतीय टीम के कप्तान धौनी ने भी सीनियर खिलाडि़यों के मैदान पर चुस्ती फुर्ती के बहाने क्रिकेट का भगवान कहे जाने वाले सचिन पर भी निशाना साधा था। यकीनन सचिन इस दौरे पर अपने चिर परिचित बल्लेबाजी का वह नजारा प्रस्तुत नहीं कर पाए हैं, जिसके लिए वे दुनिया भर में जाने जाते हैं। परंतु हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि उनके टीम में होने से ही विपक्षी टीम का आत्मविश्वास डगमगाया रहता है। क्रिकेट के विशेषज्ञ भी इस बात से इनकार नहीं करेंगे कि स्लिप में सचिन एक बेमिसाल फील्डर हैं।
निश्चित रूप से सचिन अब उम्र के उस पड़ाव की तरफ बढ़ रहे हैं,जहां फिटनेस खिलाडि़यों की समस्‍या बन जाती है और वे सन्‍यास की बात सोचने लगते हैं। भारतीय टीम को पहला विश्‍वकप दिलवाने वाले कपिल देव का यह कहना कि सचिन को विश्‍वकप के बाद ही सन्‍यास ले लेना चाहिए था। यह यूं ही नहीं है। इसमें छिपे निहितार्थ को समझना होगा। टीम में धौनी एंड कंपनी शायद यह नहीं चाहती कि अब सचिन ज्‍यादा दिन तक खेलें। परंतु भारतीय क्रिकेट में सचिन के योगदान को देखते हुए शायद ही कोई सीधे सीधे उनकी आलोचना करे। वैसे भी, सचिन बातों से नहीं बल्‍ले से जवाब देने में यकीन रखते हैं। वे यह जानते हैं कि भले ही कुछ लोग उनको साइड लाइन करने की साजिश कर रहे हों, लेकिन वे इन सब बातों पर ध्‍यान दिए बिना केवल अपने खेल पर ध्‍यान दे रहे हैं। सीबी सीरीज के शेष मैचों में क्रिकेट के हर दीवाने को यह आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्‍वास है कि सचिन एक बार फिर जोरदार वापसी करेंगे।