चुनावी समर में बड़बोलापन कोई नई बात नहीं है। चूंकि
यूपी के इलेक्शन के नतीजे 2014 में होने वाले लोकसभा चुनावों का सेमीफाइनल हैं। इसीलिए
उत्तर प्रदेश में विजयश्री हासिल करने के लिए कांग्रेस कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती।
केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल का यह कहना कि कांग्रेस नहीं तो प्रदेश में
राष्ट्रपति शासन ही विकल्प। यह समझने के लिए काफी है कि कांग्रेस के लिए इस बार
यूपी कितना अहम है। यही वजह है कि विभिन्न चुनावी चरणों में जब कांग्रेस को यह
लगता है कि चुनावी हवा उसके अनुरूप नहीं बह रही है या फिर वह कहीं पिछड़ रही है,तो
उसके नेताओं के सब्र का बांध टूट जाता है। मंत्रीजी का अहंकार भरा यह कथ्य शायद इसी
की पुष्टि करता है।
वैसे भी, टीवी पर जब आप कांग्रेस के यूपी चुनाव
प्रचार के विज्ञापन देखें तो साफ है कि वह उत्तर प्रदेश की बदहाली का रोना रोकर
वोटरों से वोट मांग रही है और मतदाताओं को ‘सोचिए जरा’ कर लुभाने में जुटी है। क्या कांग्रेस यह भूल गई है कि
प्रदेश में आजादी के बाद से सबसे अधिक समय तक किस दल की सरकार रही। क्या प्रदेश
महज कुछ सालों में ही बदहाल हो गया। कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि यूपी की
हालत के लिए वह भी उतनी ही दोषी है,जितनी की सपा,बसपा या बीजेपी।
जरा गौर फरमाइए। कभी अत्यंत पिछड़े प्रदेश में
शुमार किए जाने वाले बिहार के विकासद पर। आज पूरे देश की विकास दर जहां 7 प्रतिशत
से नीचे है वहीं बिहार 14 प्रतिशत से अधिक ग्रोथ रेट दर्ज कर रहा है। सुशासन की
तरफ बढते बिहार में जनता ने नीतिश को दुबारा अवसर शायद इसीलिए दिया था। दूसरी बार
नीतिश भी यह नहीं जानते थे कि उनको इतना प्रचंड बहुमत मिलेगा कि विपक्षी दल उसके
बवंडर में उड़ जाएंगे।
यदि यूपी में बढ़े मतदान प्रतिशत को वर्तमान मायावती
सरकार के खिलाफ माना जा रहा है,तो इसके लिए सभी दलों को 6 मार्च का इंतजार करना
होगा। चुनाव नतीजे दूध का दूध और पानी का पानी कर देंगे। जनता को जिस दल पर भरोसा
होगा,उसे ही विजयश्री मिलेगी। चुनावी सर्वेक्षण एकदम सटीक बैठें यह दावे से नहीं
कहा जा सकता। 2007 में यूपी चुनावों के बाद न तो सर्वेक्षण और न ही खुद मायावती यह
जानती थीं कि उनको अपने दम पर स्पष्ट बहुमत मिलेगा।
इसीलिए श्रीप्रकाश बाबूजी, जरा धीरे बोलिए,पब्लिक
खड़ी यहां पब्लिक खड़ी।
बढ़िया पोस्ट.....
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