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गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

बाबा अभी दिल्‍ली दूर है


    बाबा रामदेव के समर्थकों पर पिछले साल 4 जून की रात रामलीला मैदान पर जिस तरह पुलिसिया बर्बरता हुई क्‍या वह मजबूरी में उठाया गया कदम था या फिर सरकार के इशारे पर रामदेव और उनके समर्थकों पर आधी रात के बाद यह कार्रवाई की गई। सुप्रीम कोर्ट के बृहस्‍पतिवार को इस मुददे पर फैसले के बाद अब सब साफ हो गया है कि उस रात जमकर पुलिसिया बर्बरता हुई,जिसे पुलिस बराबर नकारती रही।
यह हम सभी जानते हैं कि रामलीला मैदान पर पुलिसिया तांडव के बीच किसी तरह अपनी जान बचा कर भागे बाबा रामदेव खुद सुप्रीम कोर्ट नहीं गए थे, बल्कि उच्‍चतम न्‍यायालय ने मीडिया रिर्पोटों के आधार पर इस मामले पर स्‍वत: संज्ञान लिया था। निश्चित रूप से इस फैसले से बाबा रामदेव बेहद खुश हैं और इसे एक बड़ी जीत मान रहे हैं, हालांकि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद बाबा का दायित्‍व और भी बढ़ जाता है। योग सिखा कर दुनिया भर में नाम कमाने वाले रामदेव का आंदोलन भ्रष्‍टाचार और काले धन पर ही केंद्रीत रहेगा, तो यकीनन उनको वैसा ही समर्थन फिर से मिलेगा, जैसा पहले।
पहले बाबा रामदेव और फिर अन्‍ना हजारे का आंदालोन, दोनों का ही मूल उद्देश्य भ्रष्‍टाचार और काले धन की वापसी के साथ एक सशक्‍त लोकपाल सिस्‍टम लाने का रहा, मगर व्‍यवहार में एक सीमा के बाद यह एक पार्टी विशेष के खिलाफ अभियान ही ज्‍यादा बन कर रह गया। नतीजा यह हुआ कि भ्रष्‍टाचार से जूझती आम जनता का जोश भी ठंडा पड़ गया। शायद यही वजह रही कि अन्‍ना ने जब मुंबई में सशक्‍त लोकपाल के लिए रामलीला मैदान के बाद तीसरी बार अनशन शुरू किया तो वे लोगों का वैसा समर्थन हासिल करने में कामयाब नहीं रहे, जैसा उनको पहले मिलता रहा। ऐसे में जब सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद यह कहा जा रहा है कि रामदेव एक बार फिर नई ऊर्जा के साथ भ्रष्‍टाचार और काले धन के मुददे पर स्‍वर मुखर करेंगे तो उनसे यह उम्‍मीद की जाती है कि वे किसी बड़बोलेपन का शिकार न हों और जिम्‍मेदारी की भावना से काम करें। यदि वे ऐसा करते हैं तो एक बार पुन: आमजन विशेषकर युवाओं का भरपूर समर्थन हासिल कर पाएँगे और भ्रष्‍टाचार व कालेधन के खिलाफ उनका अभियान सिरे चढेगा। 

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